नवरात्रि 2025 के अनुष्ठान और धार्मिक मान्यताएं
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नवरात्रि, भारत में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो देवी दुर्गा और उनके नौ दिव्य रूपों (नवदुर्गा) को समर्पित है। यह पर्व अश्विन मास (सितंबर-अक्टूबर) में पड़ता है और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है, जिसका समापन विजयादशमी (दशहरा) के साथ होता है। यह नौ दिनों की गहन भक्ति, उपवास और आध्यात्मिक शुद्धि का समय है। इस साल, शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर 2025 से शुरू हो रही है।
इस साल शारदीय नवरात्रि 10 दिनों की होगी, क्योंकि चतुर्थी तिथि बढ़ रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 22 सितंबर को दोपहर 01:23 बजे शुरू होगी और 23 सितंबर को दोपहर 02:55 बजे समाप्त होगी। तिथि का बढ़ना बेहद शुभ माना जाता है, जिससे नवरात्रि का प्रभाव और भी कल्याणकारी होगा। कलश स्थापना 22 सितंबर को होगी और दुर्गा पूजा पंडालों में देवी की मूर्ति की स्थापना सप्तमी तिथि, 29 सितंबर को की जाएगी।
अनुष्ठान: इस दिन कलश स्थापना (घटस्थापना) होती है। नारियल, आम के पत्ते और जल से भरा कलश शुभता का प्रतीक है।
महत्व: शैलपुत्री प्रकृति और स्थिरता की देवी मानी जाती हैं। उनकी पूजा से नई शुरुआत के लिए शक्ति और साहस मिलता है।
दूसरा दिन – द्वितीया (23 सितंबर): ब्रह्मचारिणी पूजा
अनुष्ठान: फूल, धूप और गुड़ के साथ देवी की पूजा होती है। कई भक्त फलाहार उपवास रखते हैं।
महत्व: ब्रह्मचारिणी तपस्या और ज्ञान की देवी हैं। उनकी आराधना से संयम, धैर्य और विद्या की प्राप्ति होती है।
अनुष्ठान: दूध, मिठाई और लाल पुष्प अर्पित किए जाते हैं।
महत्व: चंद्रघंटा साहस और शांति का प्रतीक हैं। उनकी पूजा भय दूर करती है और शांति का मार्ग दिखाती है।
अनुष्ठान: कद्दू, मालपुआ और दीप जलाकर पूजा की जाती है।
महत्व: कूष्मांडा सृजन और ऊर्जा की देवी हैं। उनकी कृपा से समृद्धि और स्वास्थ्य मिलता है।
अनुष्ठान: केले, धूप और पीले फूल अर्पित किए जाते हैं।
महत्व: स्कंदमाता मातृत्व और करुणा का प्रतीक हैं। उनकी आराधना से परिवार में सुख-शांति आती है।
अनुष्ठान: शहद और फूलों से पूजा होती है। अविवाहित कन्याएँ विशेष रूप से विवाह योग हेतु प्रार्थना करती हैं।
महत्व: कात्यायनी शक्ति और साहस की देवी हैं। वे बाधाओं को दूर करती हैं।
अनुष्ठान: गुड़ और तिल अर्पित किए जाते हैं। भक्त पूरी रात जागरण कर माता की आराधना करते हैं।
महत्व: कालरात्रि अंधकार और नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं।
अनुष्ठान: कन्या पूजन (कुमारी पूजा) किया जाता है और बालिकाओं को भोजन व उपहार दिए जाते हैं।
महत्व: महागौरी शुद्धता और क्षमा की देवी हैं। उनकी पूजा से जीवन में शांति और सुख मिलता है।
अनुष्ठान: नारियल, मेवे और फल अर्पित किए जाते हैं।
महत्व: सिद्धिदात्री सिद्धियों और ज्ञान की देवी हैं। उनकी कृपा से आध्यात्मिक उन्नति होती है।
विजयादशमी (2 अक्टूबर 2025): नवरात्रि के बाद विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है, जो मां दुर्गा की महिषासुर पर और भगवान राम की रावण पर विजय का प्रतीक है। इस दिन रावण के पुतले जलाए जाते हैं। नवरात्रि सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक शुद्धि, नारी शक्ति के सम्मान और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है।
नवरात्रि 2025 की खास बात और शुभ मुहूर्त
इस साल शारदीय नवरात्रि 10 दिनों की होगी, क्योंकि चतुर्थी तिथि बढ़ रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 22 सितंबर को दोपहर 01:23 बजे शुरू होगी और 23 सितंबर को दोपहर 02:55 बजे समाप्त होगी। तिथि का बढ़ना बेहद शुभ माना जाता है, जिससे नवरात्रि का प्रभाव और भी कल्याणकारी होगा। कलश स्थापना 22 सितंबर को होगी और दुर्गा पूजा पंडालों में देवी की मूर्ति की स्थापना सप्तमी तिथि, 29 सितंबर को की जाएगी।
नौ दिनों के अनुष्ठान और महत्व
पहला दिन – प्रतिपदा (22 सितंबर): शैलपुत्री पूजा
अनुष्ठान: इस दिन कलश स्थापना (घटस्थापना) होती है। नारियल, आम के पत्ते और जल से भरा कलश शुभता का प्रतीक है।
महत्व: शैलपुत्री प्रकृति और स्थिरता की देवी मानी जाती हैं। उनकी पूजा से नई शुरुआत के लिए शक्ति और साहस मिलता है।
दूसरा दिन – द्वितीया (23 सितंबर): ब्रह्मचारिणी पूजा
अनुष्ठान: फूल, धूप और गुड़ के साथ देवी की पूजा होती है। कई भक्त फलाहार उपवास रखते हैं।
महत्व: ब्रह्मचारिणी तपस्या और ज्ञान की देवी हैं। उनकी आराधना से संयम, धैर्य और विद्या की प्राप्ति होती है।
तीसरा दिन – तृतीया (24 सितंबर): चंद्रघंटा पूजा
अनुष्ठान: दूध, मिठाई और लाल पुष्प अर्पित किए जाते हैं।
महत्व: चंद्रघंटा साहस और शांति का प्रतीक हैं। उनकी पूजा भय दूर करती है और शांति का मार्ग दिखाती है।
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चौथा दिन – चतुर्थी (26 सितंबर): कूष्मांडा पूजा
अनुष्ठान: कद्दू, मालपुआ और दीप जलाकर पूजा की जाती है।
महत्व: कूष्मांडा सृजन और ऊर्जा की देवी हैं। उनकी कृपा से समृद्धि और स्वास्थ्य मिलता है।
पाँचवाँ दिन – पंचमी (27 सितंबर): स्कंदमाता पूजा
अनुष्ठान: केले, धूप और पीले फूल अर्पित किए जाते हैं।
महत्व: स्कंदमाता मातृत्व और करुणा का प्रतीक हैं। उनकी आराधना से परिवार में सुख-शांति आती है।
छठा दिन – षष्ठी (28 सितंबर) : कात्यायनी पूजा
अनुष्ठान: शहद और फूलों से पूजा होती है। अविवाहित कन्याएँ विशेष रूप से विवाह योग हेतु प्रार्थना करती हैं।
महत्व: कात्यायनी शक्ति और साहस की देवी हैं। वे बाधाओं को दूर करती हैं।
सातवाँ दिन – सप्तमी (29 सितंबर): कालरात्रि पूजा
अनुष्ठान: गुड़ और तिल अर्पित किए जाते हैं। भक्त पूरी रात जागरण कर माता की आराधना करते हैं।
महत्व: कालरात्रि अंधकार और नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं।
आठवाँ दिन – अष्टमी (30 सितंबर): महागौरी पूजा
अनुष्ठान: कन्या पूजन (कुमारी पूजा) किया जाता है और बालिकाओं को भोजन व उपहार दिए जाते हैं।
महत्व: महागौरी शुद्धता और क्षमा की देवी हैं। उनकी पूजा से जीवन में शांति और सुख मिलता है।
नौवाँ दिन – नवमी (1 अक्टूबर): सिद्धिदात्री पूजा
अनुष्ठान: नारियल, मेवे और फल अर्पित किए जाते हैं।
महत्व: सिद्धिदात्री सिद्धियों और ज्ञान की देवी हैं। उनकी कृपा से आध्यात्मिक उन्नति होती है।
विजयादशमी (2 अक्टूबर 2025): नवरात्रि के बाद विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है, जो मां दुर्गा की महिषासुर पर और भगवान राम की रावण पर विजय का प्रतीक है। इस दिन रावण के पुतले जलाए जाते हैं। नवरात्रि सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक शुद्धि, नारी शक्ति के सम्मान और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है।









