शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा कैसे करें
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शरद ऋतु की आहट के साथ ही नवरात्रि का उत्सव प्रारंभ हो जाता है, जो नौ दिनों तक चलने वाला यह पावन अनुष्ठान देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना पर केंद्रित होता है। 2025 में शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से आरंभ होगी, और इसका पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित रहेगा। यह देवी पर्वत की पुत्री के रूप में जानी जाती हैं, जो शक्ति और स्थिरता का प्रतीक हैं। नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना से होती है, जो समृद्धि और शुभता का आधार बनाती है। इस अवसर पर सही विधि से पूजन करने से जीवन में नई दिशा मिलती है।
नवरात्रि का प्रथम चरण मां शैलपुत्री को अर्पित किया जाता है, जो भगवान शिव की पहली पत्नी पार्वती का प्रारंभिक रूप हैं। इनकी सवारी बैल है, और ये त्रिशूल धारण करती हैं। इस दिन पूजा करने से भक्तों को बल और धैर्य प्राप्त होता है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री की कृपा से कठिनाइयां दूर होती हैं और जीवन पर्वत की तरह अटल बनता है।
कलश स्थापना की तैयारी
पूजा स्थल को शुद्ध करने के लिए सबसे पहले गंगाजल का छिड़काव करें। एक साफ मिट्टी का या तांबे का कलश लें, जिसमें साफ पानी भरें। कलश के मुख पर सुपारी, सुपारी के ऊपर लाल कपड़ा बांधें, और उस पर आम या पान के पत्ते रखें। कलश के आधार में जौ की बाली बोएं, जो नौ दिनों तक अंकुरित होंगी। यह प्रक्रिया नवरात्रि की नींव मजबूत करती है।
कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का चयन करें, जो आमतौर पर प्रातःकाल होता है। पूजा स्थल पर स्वास्तिक बनाएं और कलश को स्थापित करें। कलश को मंगल कलश के रूप में सजाएं, जिसमें सात प्रकार के अनाज डालें। फिर, देवी दुर्गा का आह्वान करें। इस दौरान "ॐ नमो भगवती देव्यै" मंत्र का जाप करें। स्थापना के बाद कलश को स्पर्श कर परिवार के सदस्य आशीर्वाद लें।
मां शैलपुत्री की पूजन विधि
प्रथम दिवस पर मां शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। उन्हें लाल चुनरी अर्पित करें और घी का दीपक प्रज्वलित करें। पूजा में फल, मिठाई और कुमारी पूजन शामिल करें। आरती के समय "या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।" का पाठ करें। पूजन के अंत में प्रसाद वितरण करें।
इस दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु फलाहार करें और गीता पाठ सुनें। घर में लक्ष्मी-गणेश की छोटी पूजा भी की जाती है। मां शैलपुत्री की कथा का श्रवण अवश्य करें, जो व्रत की सफलता बढ़ाती है।इस प्रकार, नवरात्रि के पहले दिन की साधना से जीवन में शांति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
मां शैलपुत्री का महत्व
नवरात्रि का प्रथम चरण मां शैलपुत्री को अर्पित किया जाता है, जो भगवान शिव की पहली पत्नी पार्वती का प्रारंभिक रूप हैं। इनकी सवारी बैल है, और ये त्रिशूल धारण करती हैं। इस दिन पूजा करने से भक्तों को बल और धैर्य प्राप्त होता है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री की कृपा से कठिनाइयां दूर होती हैं और जीवन पर्वत की तरह अटल बनता है।
कलश स्थापना की तैयारी
पूजा स्थल को शुद्ध करने के लिए सबसे पहले गंगाजल का छिड़काव करें। एक साफ मिट्टी का या तांबे का कलश लें, जिसमें साफ पानी भरें। कलश के मुख पर सुपारी, सुपारी के ऊपर लाल कपड़ा बांधें, और उस पर आम या पान के पत्ते रखें। कलश के आधार में जौ की बाली बोएं, जो नौ दिनों तक अंकुरित होंगी। यह प्रक्रिया नवरात्रि की नींव मजबूत करती है।
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कलश स्थापना की चरणबद्ध विधि
कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का चयन करें, जो आमतौर पर प्रातःकाल होता है। पूजा स्थल पर स्वास्तिक बनाएं और कलश को स्थापित करें। कलश को मंगल कलश के रूप में सजाएं, जिसमें सात प्रकार के अनाज डालें। फिर, देवी दुर्गा का आह्वान करें। इस दौरान "ॐ नमो भगवती देव्यै" मंत्र का जाप करें। स्थापना के बाद कलश को स्पर्श कर परिवार के सदस्य आशीर्वाद लें।
मां शैलपुत्री की पूजन विधि
प्रथम दिवस पर मां शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। उन्हें लाल चुनरी अर्पित करें और घी का दीपक प्रज्वलित करें। पूजा में फल, मिठाई और कुमारी पूजन शामिल करें। आरती के समय "या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।" का पाठ करें। पूजन के अंत में प्रसाद वितरण करें।
नवरात्रि प्रथम दिन के अन्य अनुष्ठान
इस दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु फलाहार करें और गीता पाठ सुनें। घर में लक्ष्मी-गणेश की छोटी पूजा भी की जाती है। मां शैलपुत्री की कथा का श्रवण अवश्य करें, जो व्रत की सफलता बढ़ाती है।इस प्रकार, नवरात्रि के पहले दिन की साधना से जीवन में शांति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।