ओम जय जगदीश हरे’ आरती की अद्भुत कहानी: किसने, कब और कैसे लिखी विष्णु भगवान की यह अमर स्तुति?
जब भी हम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, तो अनायास ही हमारे होंठों पर एक अद्भुत आरती आ जाती है, वह है 'ओम जय जगदीश हरे'। यह आरती न केवल मंदिरों और घरों में गूंजती है, बल्कि हर धार्मिक और मांगलिक कार्य का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुकी है। इसकी धुन में एक ऐसी शांति और मिठास है कि यह हर किसी के मन को मोह लेती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इतनी मनमोहक और अद्भुत आरती आखिर किसने, कब और कैसे लिखी थी? और यह कैसे पूरे देश में इतनी प्रसिद्ध हो गई? आज हम आपको इस भक्तिमय और ऐतिहासिक आरती की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं, जिसके लेखक और इसके लोकप्रिय होने का सफर बहुत ही प्रेरणादायक है।
देशभर में भगवान विष्णु की इतनी प्रसिद्ध आरती की रचना पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने की थी। उनका जन्म 24 जून 1837 को पंजाब के जालंधर जिले के फिल्लौर नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता, जयदयालु, एक कुशल ज्योतिषी थे जिन्होंने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि उनका पुत्र एक असाधारण बालक बनेगा। श्रद्धाराम शर्मा ने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने 10 साल की उम्र से ही संस्कृत, हिंदी, फारसी और ज्योतिष जैसे विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया। वे इन सभी विषयों में बहुत मेधावी थे और तेजी से आगे बढ़े। उनका विवाह महताब कौर नामक एक सिख महिला से हुआ था।वर्ष 1881 में श्रद्धाराम जी का देहांत हो गया।
पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने भगवान विष्णु की 'ओम जय जगदीश हरे' आरती की रचना वर्ष 1870 में की थी। इस रचना के बाद उनकी लोकप्रियता बहुत अधिक बढ़ गई।
प्रवचनों में गायन: श्रद्धाराम जी को लोग प्रवचन और सत्संग जैसे धार्मिक आयोजनों के लिए अपने घर आमंत्रित करने लगे। वे इन आयोजनों में अपनी रचित 'ओम जय जगदीश हरे' आरती को गाकर सुनाते थे।
प्रसार: लोग इस मनमोहक आरती को सुनकर बहुत प्रसन्न होते थे और इसे अपने आसपास के लोगों, बच्चों और रिश्तेदारों को भी सिखाते थे और सुनाते थे।
लोकप्रियता का सफर: इसी तरह, यह आरती एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक, एक गाँव से दूसरे गाँव तक धीरे-धीरे फैलती चली गई। कालांतर में, यह आरती और भजनों की विभिन्न किताबों में भी छपने लगी।
यह आरती लोगों के हृदय में इतनी गहराई तक समा गई कि आज के समय में भारत में शायद ही कोई हो, जो भगवान विष्णु की पूजा में 'ओम जय जगदीश हरे' आरती को न गाता हो। यह उनकी भक्ति, श्रद्धा और अमर रचना का प्रमाण है।
ओम जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे ॥
ओम जय जगदीश हरे..
जो ध्यावे फल पावे,दुःख बिनसे मन का,स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे,सुख सम्पति घर आवे,कष्ट मिटे तन का ॥
ओम जय जगदीश हरे.. मात पिता तुम मेरे,शरण गहूं किसकी,स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,तुम बिन और न दूजा,आस करूं मैं जिसकी ॥
ओम जय जगदीश हरे.. तुम पूरण परमात्मा,तुम अन्तर्यामी,स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर,पारब्रह्म परमेश्वर,तुम सब के स्वामी ॥
ओम जय जगदीश हरे.. तुम करुणा के सागर,तुम पालनकर्ता,स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी,मैं सेवक तुम स्वामी,कृपा करो भर्ता॥
ओम जय जगदीश हरे..
तुम हो एक अगोचर,सबके प्राणपति,स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय,किस विधि मिलूं
दयामय,तुमको मैं कुमति ॥
ओम जय जगदीश हरे..
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,ठाकुर तुम मेरे,स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ,अपने शरण लगाओ,द्वार पड़ा तेरे ॥
ओम जय जगदीश हरे..
विषय-विकार मिटाओ,पाप हरो देवा,स्वामी कष्ट हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,सन्तन की सेवा ॥
ओम जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे ॥
‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती के रचयिता कौन थे?
देशभर में भगवान विष्णु की इतनी प्रसिद्ध आरती की रचना पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने की थी। उनका जन्म 24 जून 1837 को पंजाब के जालंधर जिले के फिल्लौर नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता, जयदयालु, एक कुशल ज्योतिषी थे जिन्होंने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि उनका पुत्र एक असाधारण बालक बनेगा। श्रद्धाराम शर्मा ने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने 10 साल की उम्र से ही संस्कृत, हिंदी, फारसी और ज्योतिष जैसे विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया। वे इन सभी विषयों में बहुत मेधावी थे और तेजी से आगे बढ़े। उनका विवाह महताब कौर नामक एक सिख महिला से हुआ था।वर्ष 1881 में श्रद्धाराम जी का देहांत हो गया।
आरती कब और कैसे मशहूर हुई?
पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने भगवान विष्णु की 'ओम जय जगदीश हरे' आरती की रचना वर्ष 1870 में की थी। इस रचना के बाद उनकी लोकप्रियता बहुत अधिक बढ़ गई।
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प्रवचनों में गायन: श्रद्धाराम जी को लोग प्रवचन और सत्संग जैसे धार्मिक आयोजनों के लिए अपने घर आमंत्रित करने लगे। वे इन आयोजनों में अपनी रचित 'ओम जय जगदीश हरे' आरती को गाकर सुनाते थे।
प्रसार: लोग इस मनमोहक आरती को सुनकर बहुत प्रसन्न होते थे और इसे अपने आसपास के लोगों, बच्चों और रिश्तेदारों को भी सिखाते थे और सुनाते थे।
लोकप्रियता का सफर: इसी तरह, यह आरती एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक, एक गाँव से दूसरे गाँव तक धीरे-धीरे फैलती चली गई। कालांतर में, यह आरती और भजनों की विभिन्न किताबों में भी छपने लगी।
यह आरती लोगों के हृदय में इतनी गहराई तक समा गई कि आज के समय में भारत में शायद ही कोई हो, जो भगवान विष्णु की पूजा में 'ओम जय जगदीश हरे' आरती को न गाता हो। यह उनकी भक्ति, श्रद्धा और अमर रचना का प्रमाण है।
भगवान विष्णु की आरती - ॐ जय जगदीश हरे
ओम जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे ॥
ओम जय जगदीश हरे..
जो ध्यावे फल पावे,दुःख बिनसे मन का,स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे,सुख सम्पति घर आवे,कष्ट मिटे तन का ॥
ओम जय जगदीश हरे.. मात पिता तुम मेरे,शरण गहूं किसकी,स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,तुम बिन और न दूजा,आस करूं मैं जिसकी ॥
ओम जय जगदीश हरे.. तुम पूरण परमात्मा,तुम अन्तर्यामी,स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर,पारब्रह्म परमेश्वर,तुम सब के स्वामी ॥
ओम जय जगदीश हरे.. तुम करुणा के सागर,तुम पालनकर्ता,स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी,मैं सेवक तुम स्वामी,कृपा करो भर्ता॥
ओम जय जगदीश हरे..
तुम हो एक अगोचर,सबके प्राणपति,स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय,किस विधि मिलूं
दयामय,तुमको मैं कुमति ॥
ओम जय जगदीश हरे..
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,ठाकुर तुम मेरे,स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ,अपने शरण लगाओ,द्वार पड़ा तेरे ॥
ओम जय जगदीश हरे..
विषय-विकार मिटाओ,पाप हरो देवा,स्वामी कष्ट हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,सन्तन की सेवा ॥
ओम जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे ॥