ओम जय शिव ओमकारा: शिवजी की पावन आरती
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भगवान शिव, जो त्रिदेवों में संहारक हैं, अपनी करुणा और शक्ति से भक्तों को आकर्षित करते हैं। ओम जय शिव ओमकारा आरती एक प्रसिद्ध भजन है, जो शिव के ओमकार रूप को उजागर करती है। यह आरती शिव के अनंत गुणों का वर्णन करती है और सावन महीने में गाने का विशेष महत्व रखती है। सरल शब्दों में रची गई यह आरती हर भक्त के हृदय को छू जाती है। आइए, इसकी पंक्तियों के माध्यम से शिव की आराधना करें।
यह आरती शिव के ब्रह्मा-विष्णु-सदाशिव स्वरूप को याद दिलाती है, जो सृष्टि के हर कोने में व्याप्त हैं। सावन सोमवार को इसका पाठ करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शिवानंद स्वामी के अनुसार, जो भक्त इसे गाते हैं, वे अपनी इच्छाओं का फल पाते हैं। यह न केवल पूजा का हिस्सा है, बल्कि दैनिक जीवन में शांति और साहस का स्रोत भी बनती है।
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्य ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥
आरती गाने के लाभ: आध्यात्मिक शांति और फल
इस आरती का नियमित जाप शिव की कृपा बरसाता है। सावन में इसे गाने से पाप नष्ट होते हैं और मनोकामनाएं साकार होती हैं। यह भक्त को शिव के सृजन, पालन और संहार के स्वरूप से जोड़ता है, जिससे जीवन में स्थिरता आती है। शिवानंद स्वामी की यह रचना भक्तों को सिखाती है कि भक्ति से हर इच्छा पूरी हो सकती है।
आरती का महत्व: शिव भक्ति का सरल माध्यम
यह आरती शिव के ब्रह्मा-विष्णु-सदाशिव स्वरूप को याद दिलाती है, जो सृष्टि के हर कोने में व्याप्त हैं। सावन सोमवार को इसका पाठ करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शिवानंद स्वामी के अनुसार, जो भक्त इसे गाते हैं, वे अपनी इच्छाओं का फल पाते हैं। यह न केवल पूजा का हिस्सा है, बल्कि दैनिक जीवन में शांति और साहस का स्रोत भी बनती है।
ओम जय शिव ओमकारा आरती का पूर्ण पाठ
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
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ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्य ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥