दशहरे पर रावण दहन कब शुरू हुआ? जानें रांची से दिल्ली तक की कहानी

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हर वर्ष दशहरे पर देशभर में मैदानों पर भीड़ जुटती है। रामलीला का आयोजन होता है और अंत में रावण का बड़ा पुतला आग में जलाया जाता है। यह दृश्य बुराई के नाश और सत्य की विजय का संदेश देता है। रामायण की कथा बहुत पुरानी है, लेकिन रावण दहन जैसी परंपरा स्वतंत्रता के बाद लोकप्रिय हुई। आज यह त्योहार की मुख्य आकर्षण बन चुका है। आइए जानें इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई।


रावण दहन की पहली शुरुआत कहां हुई?


जानकारों का मानना है कि रावण का पहला पुतला जलाने का आयोजन रांची शहर में हुआ। यह तब बिहार का हिस्सा था। 1948 में पाकिस्तान से आए विस्थापित लोगों ने इसकी शुरुआत की। शुरू में यह छोटा सा कार्यक्रम था, लेकिन बाद में इसमें लोगों की रुचि बढ़ी और यह बड़ा उत्सव बन गया।

दिल्ली में रावण दहन का पहला आयोजन


राजधानी दिल्ली में यह परंपरा 1953 में अपनाई गई। 17 अक्टूबर को पहली बार रावण का पुतला जलाया गया। खास बात यह रही कि पुतला लकड़ी या कागज से नहीं, बल्कि कपड़ों से तैयार किया गया था। शुरुआती समय में यह सीमित स्तर पर हुआ, लेकिन धीरे-धीरे यह दिल्ली के प्रमुख आयोजनों में शामिल हो गया। अब रामलीला मैदान में होने वाली रामलीला और रावण दहन यहां की शान है।

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नागपुर की खास दास्तान

नागपुर में जब पहली बार रावण का पुतला बनाया गया, तो उसकी लंबाई 35 फीट थी। उस समय क्रेन जैसी मशीनें उपलब्ध नहीं थीं। पुतले को सीधा करने के लिए ऊंची सीढ़ी का इस्तेमाल किया गया। लगभग 50 लोग सीढ़ी पर चढ़े और नीचे से 100 से अधिक लोगों ने रस्सियों से सहारा दिया। यह प्रयास लोगों को बहुत उत्साहित करने वाला था।


रावण दहन का संदेश क्या है?


दशहरे पर भगवान राम ने रावण का अंत किया था। यह बुराई पर अच्छाई की सफलता का प्रतीक है। रावण दहन से यही सीख मिलती है कि घमंड, अन्याय या अत्याचार कितना भी शक्तिशाली हो, अंत में सत्य और न्याय की ही जीत होती है।


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