भक्ति में लीन कर देने वाला श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी आरती भजन
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भगवान श्रीकृष्ण को प्रेम, करुणा और धर्म के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। "श्री कृष्णा गोविंद हरे मुरारी" आरती भजन का महत्व केवल एक भक्तिगीत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आराधना, आत्मिक संतोष और ईश्वर से जुड़ाव का माध्यम है। यह भजन न केवल जन्माष्टमी पर बल्कि किसी भी दिन प्रभु की आराधना के लिए गाया जा सकता है।
श्री कृष्णा गोविंद हरे मुरारी भजन का महत्व
इस भजन के माध्यम से भक्त श्रीकृष्ण को "माता-पिता, सखा और स्वामी" मानकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
इसके शब्द गीता के उपदेश और भगवान के जीवन के विभिन्न स्वरूपों की झलक कराते हैं।
इस आरती को गाने से भक्त अपने दुखों और कष्टों को भुलाकर भक्ति में लीन हो जाते हैं।
यह भजन कृष्ण-भक्ति की गहराई को दर्शाता है और हर पंक्ति आध्यात्मिक संदेश देती है।
श्री कृष्णा गोविंद हरे मुरारी भजन लिरिक्स (हिंदी में)
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे,
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:॥
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
हे नाथ नारायण…॥
पितु मात स्वामी, सखा हमारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
हे नाथ नारायण…॥
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी…
बंदी गृह के, तुम अवतारी, कहीं जन्मे, कही पले मुरारी।
किसी के जाये, किसी के कहाये, है अद्भुत, हर बात तिहारी॥
गोकुल में चमके, मथुरा के तारे… हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
अधर पे बंशी, ह्रदय में राधे, बट गए दोनों में, आधे-आधे
हे राधा नागर, हे भक्त वत्सल,
सदैव भक्तों के, काम साधे॥
वहीं गए, जहां गए पुकारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
गीता में उपदेश सुनाया, धर्म युद्ध को धर्म बताया।
कर्म तू कर मत रख फल की इच्छा, यह सन्देश तुम्ही से पाया।
अमर है गीता के बोल सारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधू सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देवा॥
राधे कृष्णा राधे कृष्णा, राधे राधे कृष्णा कृष्णा॥
हरी बोल, हरी बोल, हरी बोल, हरी बोल॥
राधे कृष्णा राधे कृष्णा, राधे राधे कृष्णा कृष्णा॥
"श्री कृष्णा गोविंद हरे मुरारी" भजन भक्तों के लिए केवल गीत नहीं बल्कि ईश्वर से संवाद का माध्यम है। यह भजन हमें सिखाता है कि भगवान हर रूप में हमारे साथ हैं - माता-पिता, मित्र, और गुरु बनकर। जो भी भक्त इसे श्रद्धा से गाता है, उसके जीवन में शांति और आनंद स्वतः आ जाता है।
श्री कृष्णा गोविंद हरे मुरारी भजन का महत्व
इस भजन के माध्यम से भक्त श्रीकृष्ण को "माता-पिता, सखा और स्वामी" मानकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
इसके शब्द गीता के उपदेश और भगवान के जीवन के विभिन्न स्वरूपों की झलक कराते हैं।
इस आरती को गाने से भक्त अपने दुखों और कष्टों को भुलाकर भक्ति में लीन हो जाते हैं।
यह भजन कृष्ण-भक्ति की गहराई को दर्शाता है और हर पंक्ति आध्यात्मिक संदेश देती है।
श्री कृष्णा गोविंद हरे मुरारी भजन लिरिक्स (हिंदी में)
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे,
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:॥
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
हे नाथ नारायण…॥
पितु मात स्वामी, सखा हमारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
हे नाथ नारायण…॥
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी…
बंदी गृह के, तुम अवतारी, कहीं जन्मे, कही पले मुरारी।
किसी के जाये, किसी के कहाये, है अद्भुत, हर बात तिहारी॥
गोकुल में चमके, मथुरा के तारे… हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
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अधर पे बंशी, ह्रदय में राधे, बट गए दोनों में, आधे-आधे
हे राधा नागर, हे भक्त वत्सल,
सदैव भक्तों के, काम साधे॥
वहीं गए, जहां गए पुकारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
गीता में उपदेश सुनाया, धर्म युद्ध को धर्म बताया।
कर्म तू कर मत रख फल की इच्छा, यह सन्देश तुम्ही से पाया।
अमर है गीता के बोल सारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधू सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देवा॥
राधे कृष्णा राधे कृष्णा, राधे राधे कृष्णा कृष्णा॥
हरी बोल, हरी बोल, हरी बोल, हरी बोल॥
राधे कृष्णा राधे कृष्णा, राधे राधे कृष्णा कृष्णा॥
"श्री कृष्णा गोविंद हरे मुरारी" भजन भक्तों के लिए केवल गीत नहीं बल्कि ईश्वर से संवाद का माध्यम है। यह भजन हमें सिखाता है कि भगवान हर रूप में हमारे साथ हैं - माता-पिता, मित्र, और गुरु बनकर। जो भी भक्त इसे श्रद्धा से गाता है, उसके जीवन में शांति और आनंद स्वतः आ जाता है।