मोर पंख और बाँसुरी का महत्व, क्यों है श्री कृष्ण को इतने प्रिये?

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जन्माष्टमी एक ऐसा त्यौहार है जिसका हिंदू धर्म में काफी महत्व है। हर साल यह जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह उत्सव 16 अगस्त को मनाया जाएगा। इस पर्व को मनाने के लिए पूरा भारत देश भक्ति भाव में डूब जाएगा और हर कोई सिर्फ (“नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल ही गाएगा”)।


क्या है मोर पंख का महत्व?

हमारे पुराणों में मोर और मोर पंख को बहुत सारे देवी देवताओं से जोड़ा गया है। मोर पंख कृष्ण के शृंगार की वस्तु बन सिर्फ उनकी सुंदरता ही नहीं बढ़ाता बल्कि उनका प्रकृति के साथ गहरे रिश्ते को भी दिखाता है। मोर पंख श्री कृष्ण के साथ राधा रानी से भी जुड़ा है। यह मोर पंख श्री कृष्ण और राधा रानी के अलौकिक प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।

कैसे बने श्री कृष्ण मोर मुकुट धारी?

श्री कृष्ण की मोर मुकुट धारी बनने की कहानी उनके पिछले जन्म से जुड़ी है जो कि उन्होंने त्रेता युग में राम के रूप में अवतरित होकर लिया था। जब त्रेता युग में श्री राम सीता को खोज रहे थे तो एक मोर ने देवी सीता को खोजने में उनकी सहायता करी थी। उस मोर ने अपना हर मोर पंख गिरा कर श्री राम को सीता तक पहुँचने का रास्ता दिखाया। उस मोर की अपने सारे मोर पंख गिराने की वजह से उसकी मृत्यु हो गई। उस मोर की इस मदद का कर्ज उतारने के लिए उन्होंने उस मोर से वादा किया कि वह अगले अवतार (जन्म) में उसके मोर पंख को धारण करेंगे। तभी वो अपने श्री कृष्ण अवतार में मोर मुकुट धारी बने।


बाँसुरी का महत्व

बाँसुरी को हमारे पुराणों में श्री कृष्ण की मनपसंद वस्तु बताया गया है और तभी इसे हिंदुओं के बीच में काफी ज़्यादा पवित्र माना जाता है। इस बाँसुरी के सात छेदों को मानव के सात चक्रों का प्रतीक माना गया है। इसकी ध्वनि हमारे इन्ही चक्रों को जगाने का काम करती है। बाँसुरी की ध्वनि को कृष्ण की आवाज़ भी माना जाता है जो अपने भक्तों को सही रास्ता दिखाती है। यह बाँसुरी राधाकृष्ण और उनका जो गोपियों के साथ पवित्र रिश्ता है, उस रिश्ते की पवित्रता के बारे में भी बताता है।

मुरलीधर बनने की गाथा

कुछ प्रचलित कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण को यह बाँसुरी शिव जी ने दी थी। द्वापर युग में जब कृष्ण का जन्म हुआ था तब हर देवी-देवता उनसे मिलने के लिए आ रहा था। जब महादेव अपने प्रिय प्रभु विष्णु जी के 8वें अवतार श्री कृष्ण से मिलने गए तो वह उनके लिए उपहार में बाँसुरी लेकर गए। तभी यह बाँसुरी श्री कृष्ण को बहुत प्रिय है और वह उसे हमेशा अपने साथ रखते हैं। तभी से मथुरा के नंदलाला मुरलीधर के नाम से जाने जाते है।