कंपनी ने दिवाली पार्टी के लिए मांगे 1200 रुपये, कर्मचारी ने चैट शेयर की तो मच गया बवाल!
त्योहारों का मौसम आते ही कंपनियां कर्मचारियों के लिए पार्टी आयोजित करती हैं, लेकिन एक ऐसी घटना सामने आई है जो चर्चा का विषय बन गई। एक अज्ञात कॉर्पोरेट ऑफिस ने अक्टूबर में दिवाली से पहले पार्टी रखने का प्लान बनाया और उसके लिए स्टाफ से ही फंडिंग मांग ली। व्हाट्सएप ग्रुप में मैनेजर की ओर से भेजे गए मैसेज में स्पष्ट रूप से हर टीम मेंबर से 1200 रुपये और मैनेजर्स से 2000 रुपये देने को कहा गया। साथ ही, सभी का आना जरूरी बताया गया। यह स्क्रीनशॉट रेडिट पर पोस्ट होते ही वायरल हो गया। रेडिट पर यूजर @Warthei ने इसे शेयर करते हुए लिखा, "यह एक कंपनी के लिए शर्मनाक है।" पोस्ट को 1000 से ज्यादा अपवोट्स और 200 से अधिक कमेंट्स मिल चुके हैं।
वायरल व्हाट्सएप चैट का खुलासा
कंपनी के टीम मैनेजर ने व्हाट्सएप ग्रुप में मैसेज भेजकर सबको सूचित किया। पहले मैसेज में लिखा था: "सभी को नमस्कार, इस अक्टूबर में हम दिवाली पार्टी का रखने वाले है। जिसमें सभी टीमों 100 परसेंट अटेंडेंस जरूरी है। हर टीम मेंबर को इस पार्टी के लिए 1200 रुपये जमा करने होंगे। जबकि मैनेजर को 2 हजार रुपये देने होंगे।" इसके बाद एक और मैसेज आया: "सभी को इस पार्टी के लिए 1200 रुपये प्रति व्यक्ति देने होंगे।" रेडिट पर यह चैट शेयर होते ही लोगों ने इसे कॉपी-पेस्ट कर लिया। यह घटना दिखाती है कि कैसे एक साधारण मैसेज सोशल मीडिया पर तहलका मचा सकता है।
रेडिट पोस्ट पर लोगों ने जमकर नाराजगी जताई। एक यूजर ने लिखा, "भिखमंगी कॉर्पोरेट" कहकर कंपनी की आलोचना की। कई ने सवाल उठाया कि ऐसी पार्टी में भाग लेना क्यों अनिवार्य है। एक कमेंट में पूछा गया: "इसमें शामिल होना अनिवार्य क्यों है? क्या यह एक विकल्प नहीं होना चाहिए? अगर कोई इसमें शामिल नहीं होता और कुछ भी भुगतान नहीं करता, तो क्या होगा?" लोग कह रहे हैं कि कंपनियां खुद ही ऐसी इवेंट्स के खर्चे उठाती हैं, कर्मचारियों से चंदा मांगना गलत है। कुछ ने तो इसे शर्मिंदगी की हद बताया। कमेंट्स में बहस छिड़ गई, जहां ज्यादातर लोग कर्मचारियों के पक्ष में बोल रहे हैं। यह वायरल पोस्ट कॉर्पोरेट वर्क कल्चर पर नई चर्चा छेड़ रही है, खासकर फेस्टिव सीजन में।
आमतौर पर दिवाली जैसे त्योहारों पर कंपनियां कर्मचारियों को खुश करने के लिए पार्टियां आयोजित करती हैं, जहां खाना, मनोरंजन सब फ्री होता है। लेकिन यहां उल्टा हो गया। कंपनी ने फंडिंग का बोझ स्टाफ पर डाल दिया, जो कई लोगों को अन्यायपूर्ण लगा। यूजर ने वेन्यू की खराब क्वालिटी का भी जिक्र किया, जिससे और गुस्सा भड़का। यह घटना भारतीय वर्कप्लेस की उन प्रथाओं पर रोशनी डाल रही है, जहां कर्मचारी अधिकारों की अनदेखी होती रहती है। रेडिट जैसे प्लेटफॉर्म्स पर ऐसी स्टोरीज वायरल होने से कंपनियों को सोचने पर मजबूर होना पड़ता है। क्या यह सिर्फ एक केस है या कई जगह ऐसा हो रहा होगा? यह सवाल अब सोशल मीडिया पर गूंज रहे हैं।
वायरल व्हाट्सएप चैट का खुलासा
कंपनी के टीम मैनेजर ने व्हाट्सएप ग्रुप में मैसेज भेजकर सबको सूचित किया। पहले मैसेज में लिखा था: "सभी को नमस्कार, इस अक्टूबर में हम दिवाली पार्टी का रखने वाले है। जिसमें सभी टीमों 100 परसेंट अटेंडेंस जरूरी है। हर टीम मेंबर को इस पार्टी के लिए 1200 रुपये जमा करने होंगे। जबकि मैनेजर को 2 हजार रुपये देने होंगे।" इसके बाद एक और मैसेज आया: "सभी को इस पार्टी के लिए 1200 रुपये प्रति व्यक्ति देने होंगे।" रेडिट पर यह चैट शेयर होते ही लोगों ने इसे कॉपी-पेस्ट कर लिया। यह घटना दिखाती है कि कैसे एक साधारण मैसेज सोशल मीडिया पर तहलका मचा सकता है।
तीखी प्रतिक्रियाएं
रेडिट पोस्ट पर लोगों ने जमकर नाराजगी जताई। एक यूजर ने लिखा, "भिखमंगी कॉर्पोरेट" कहकर कंपनी की आलोचना की। कई ने सवाल उठाया कि ऐसी पार्टी में भाग लेना क्यों अनिवार्य है। एक कमेंट में पूछा गया: "इसमें शामिल होना अनिवार्य क्यों है? क्या यह एक विकल्प नहीं होना चाहिए? अगर कोई इसमें शामिल नहीं होता और कुछ भी भुगतान नहीं करता, तो क्या होगा?" लोग कह रहे हैं कि कंपनियां खुद ही ऐसी इवेंट्स के खर्चे उठाती हैं, कर्मचारियों से चंदा मांगना गलत है। कुछ ने तो इसे शर्मिंदगी की हद बताया। कमेंट्स में बहस छिड़ गई, जहां ज्यादातर लोग कर्मचारियों के पक्ष में बोल रहे हैं। यह वायरल पोस्ट कॉर्पोरेट वर्क कल्चर पर नई चर्चा छेड़ रही है, खासकर फेस्टिव सीजन में।
कॉर्पोरेट कल्चर पर सवाल
आमतौर पर दिवाली जैसे त्योहारों पर कंपनियां कर्मचारियों को खुश करने के लिए पार्टियां आयोजित करती हैं, जहां खाना, मनोरंजन सब फ्री होता है। लेकिन यहां उल्टा हो गया। कंपनी ने फंडिंग का बोझ स्टाफ पर डाल दिया, जो कई लोगों को अन्यायपूर्ण लगा। यूजर ने वेन्यू की खराब क्वालिटी का भी जिक्र किया, जिससे और गुस्सा भड़का। यह घटना भारतीय वर्कप्लेस की उन प्रथाओं पर रोशनी डाल रही है, जहां कर्मचारी अधिकारों की अनदेखी होती रहती है। रेडिट जैसे प्लेटफॉर्म्स पर ऐसी स्टोरीज वायरल होने से कंपनियों को सोचने पर मजबूर होना पड़ता है। क्या यह सिर्फ एक केस है या कई जगह ऐसा हो रहा होगा? यह सवाल अब सोशल मीडिया पर गूंज रहे हैं।
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