पीएम मोदी ने क्यों छोड़ी चीन की विक्ट्री डे परेड? भारत ने दिखाया कड़ा रुख
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चीन की राजधानी बीजिंग में बुधवार को द्वितीय विश्व युद्ध की 80वीं सालगिरह पर भव्य विक्ट्री डे सैन्य परेड का आयोजन हुआ। इस परेड में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, उत्तर कोरिया के किम जोंग-उन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री समेत कई बड़े नेता शामिल हुए। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मंच पर नहीं दिखे। उनकी गैरमौजूदगी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
कूटनीति से जुड़ा अहम संदेश
एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी का यह कदम एक सोचा-समझा कूटनीतिक फैसला था। हाल ही में SCO समिट में मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी, लेकिन बीजिंग की इस परेड में शामिल होना भारत की रणनीति के खिलाफ माना जाता। विदेश मंत्रालय के सूत्र ने कहा, “मोदी का परेड में न जाना भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देने का साफ संदेश है।”
गलवान घाटी का तनाव और PLA की ताकत
2020 में गलवान घाटी की झड़प के बाद से भारत और चीन की सेनाएं लद्दाख की सीमा पर आमने-सामने हैं। इस परिस्थिति में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की ताकत के प्रदर्शन वाली परेड में शामिल होना, भारत की सुरक्षा नीतियों से मेल नहीं खाता। मोदी का यह कदम साफ करता है कि सीमा विवाद और तनाव के बीच भारत चीन की सैन्य ताकत को मौन समर्थन नहीं देगा।

पाकिस्तान को हथियार और चीन की दोहरी नीति
चीन का पाकिस्तान को लगातार हथियार सप्लाई करना भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। SIPRI की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच साल में पाकिस्तान के 81% हथियार चीन से आए हैं। इन हथियारों का इस्तेमाल मई 2024 में भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान भी हुआ। एक सूत्र ने कहा, “जब तक चीन पाकिस्तान को हथियार सप्लाई और सीमा पर आक्रामक रुख नहीं छोड़ता, तब तक रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते।”
जापान से रिश्तों को प्राथमिकता
यह परेड जापान की हार और WWII की समाप्ति की 80वीं सालगिरह के मौके पर थी। ऐसे में मोदी की मौजूदगी जापान के साथ भारत के संबंधों को गलत संदेश दे सकती थी। विदेश नीति विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी ने इस बार जापान के साथ रिश्तों को मजबूत करने को प्राथमिकता दी।
भारत की कूटनीति और भविष्य
मोदी का यह फैसला भारत की कूटनीति को स्पष्ट करता है कि भारत बहुपक्षीय मंचों पर चीन के साथ सहयोग कर सकता है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हितों पर कोई समझौता नहीं होगा।
कूटनीति से जुड़ा अहम संदेश
एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी का यह कदम एक सोचा-समझा कूटनीतिक फैसला था। हाल ही में SCO समिट में मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी, लेकिन बीजिंग की इस परेड में शामिल होना भारत की रणनीति के खिलाफ माना जाता। विदेश मंत्रालय के सूत्र ने कहा, “मोदी का परेड में न जाना भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देने का साफ संदेश है।”
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गलवान घाटी का तनाव और PLA की ताकत
2020 में गलवान घाटी की झड़प के बाद से भारत और चीन की सेनाएं लद्दाख की सीमा पर आमने-सामने हैं। इस परिस्थिति में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की ताकत के प्रदर्शन वाली परेड में शामिल होना, भारत की सुरक्षा नीतियों से मेल नहीं खाता। मोदी का यह कदम साफ करता है कि सीमा विवाद और तनाव के बीच भारत चीन की सैन्य ताकत को मौन समर्थन नहीं देगा।
पाकिस्तान को हथियार और चीन की दोहरी नीति
चीन का पाकिस्तान को लगातार हथियार सप्लाई करना भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। SIPRI की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच साल में पाकिस्तान के 81% हथियार चीन से आए हैं। इन हथियारों का इस्तेमाल मई 2024 में भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान भी हुआ। एक सूत्र ने कहा, “जब तक चीन पाकिस्तान को हथियार सप्लाई और सीमा पर आक्रामक रुख नहीं छोड़ता, तब तक रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते।”
जापान से रिश्तों को प्राथमिकता
यह परेड जापान की हार और WWII की समाप्ति की 80वीं सालगिरह के मौके पर थी। ऐसे में मोदी की मौजूदगी जापान के साथ भारत के संबंधों को गलत संदेश दे सकती थी। विदेश नीति विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी ने इस बार जापान के साथ रिश्तों को मजबूत करने को प्राथमिकता दी।
भारत की कूटनीति और भविष्य
मोदी का यह फैसला भारत की कूटनीति को स्पष्ट करता है कि भारत बहुपक्षीय मंचों पर चीन के साथ सहयोग कर सकता है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हितों पर कोई समझौता नहीं होगा।