दो महाशक्तियों के बीच फंसा पाकिस्तान: कौन बनेगा उसका असली सहारा और क्या बनेगा युद्ध का अखाड़ा?
पाकिस्तान आजकल एक समय में दो महाशक्तियों—अमेरिका और चीन—के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। एक ओर वह चीन के साथ ‘आयरन ब्रदर’ जैसे करीबी रिश्ते बनाए रखने का प्रयास कर रहा है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ भी संबंध मजबूत कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान इस समय दो नावों की सवारी कर रहा है और भविष्य में यह दोनों शक्तियों के टकराव का मैदान बन सकता है।
हाल ही में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने वॉशिंगटन में ट्रंप के साथ लंच किया और उन्हें पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया। पाकिस्तान ने अमेरिकी कंपनियों को बलूचिस्तान में तेल, खनिज और क्रिप्टो सेक्टर तक निवेश की पेशकश भी की है। प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और मुनीर ने भारत के साथ हालिया संघर्षविराम में ट्रंप की भूमिका का श्रेय दिया और उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया। आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान की नजर अब अमेरिका से कारोबारी अवसरों पर है। ब्लॉकचेन और क्रिप्टो डील को पाकिस्तान अमेरिका के साथ नए सहयोग का प्रतीक भी बता रहा है।
चीन की नाराजगी
चीन पाकिस्तान में 62 अरब डॉलर की सीपीईसी (CPEC) परियोजना का सबसे बड़ा निवेशक और हथियार आपूर्तिकर्ता है। शहबाज़ शरीफ ने हाल ही में कहा, “सीपीईसी-2 पाकिस्तान का बीजिंग से मदद पाने का आखिरी दांव है।” चीन इस बात से नाराज़ है कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने भारतीय सीमा विवाद में अमेरिकी भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, जबकि रक्षा मोर्चे पर पाकिस्तान अभी भी चीनी जेट विमानों पर निर्भर है। चीनी विश्लेषकों ने इसे “पीठ में छुरा घोंपने जैसा” बताया है।
अमेरिका पाकिस्तान पर क्यों मेहरबान?
अमेरिका की नजर फिर से अफगानिस्तान पर है। ट्रंप प्रशासन बगराम एयरबेस में वापसी की संभावनाओं पर विचार कर रहा है, जबकि चीन अफगानिस्तान के खनिज और रणनीतिक संसाधनों पर अपना कब्जा मजबूत कर चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिका पाकिस्तान के जरिए अफगानिस्तान में पुनः सक्रिय होता है, तो यह सीधे चीन के हितों को चुनौती देगा।
भारतीय सेना के पूर्व मेजर जनरल मंदीप सिंह ने इंडिया टुडे से कहा, “पाकिस्तान दो पाटों के बीच फंसा है। चीन अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अमेरिकी दखल को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा। आने वाले समय में पाकिस्तान नया युद्धक्षेत्र बन सकता है।” वहीं पाकिस्तान मूल के पत्रकार अदिल राजा ने कहा, “यह सोचना बचकाना होगा कि चीन पाकिस्तान में अमेरिका को खुली छूट देगा।”
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चीन की नाराजगी
चीन पाकिस्तान में 62 अरब डॉलर की सीपीईसी (CPEC) परियोजना का सबसे बड़ा निवेशक और हथियार आपूर्तिकर्ता है। शहबाज़ शरीफ ने हाल ही में कहा, “सीपीईसी-2 पाकिस्तान का बीजिंग से मदद पाने का आखिरी दांव है।” चीन इस बात से नाराज़ है कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने भारतीय सीमा विवाद में अमेरिकी भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, जबकि रक्षा मोर्चे पर पाकिस्तान अभी भी चीनी जेट विमानों पर निर्भर है। चीनी विश्लेषकों ने इसे “पीठ में छुरा घोंपने जैसा” बताया है।अमेरिका पाकिस्तान पर क्यों मेहरबान?
अमेरिका की नजर फिर से अफगानिस्तान पर है। ट्रंप प्रशासन बगराम एयरबेस में वापसी की संभावनाओं पर विचार कर रहा है, जबकि चीन अफगानिस्तान के खनिज और रणनीतिक संसाधनों पर अपना कब्जा मजबूत कर चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिका पाकिस्तान के जरिए अफगानिस्तान में पुनः सक्रिय होता है, तो यह सीधे चीन के हितों को चुनौती देगा। भारतीय सेना के पूर्व मेजर जनरल मंदीप सिंह ने इंडिया टुडे से कहा, “पाकिस्तान दो पाटों के बीच फंसा है। चीन अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अमेरिकी दखल को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा। आने वाले समय में पाकिस्तान नया युद्धक्षेत्र बन सकता है।” वहीं पाकिस्तान मूल के पत्रकार अदिल राजा ने कहा, “यह सोचना बचकाना होगा कि चीन पाकिस्तान में अमेरिका को खुली छूट देगा।”