ट्रंप का बड़ा दावा: 'मोदी ने वादा किया, भारत रूसी तेल खरीदना बंद करेगा' – क्या है सच
ट्रंप ने मोदी को 'मेरा दोस्त' कहते हुए इस वादे को एक ऐतिहासिक कदम बताया। यह बयान 15 अक्टूबर 2025 को व्हाइट हाउस में ट्रेड टॉक्स के बाद दिया गया, जो यूक्रेन युद्ध के बाद ऊर्जा राजनीति में नया मोड़ ला सकता है। ट्रंप ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "मैं खुश नहीं था कि भारत तेल खरीद रहा है, और उन्होंने आज मुझे आश्वासित किया कि वे रूस से तेल नहीं खरीदेंगे।" उन्होंने आगे जोड़ा कि यह बदलाव तुरंत नहीं, बल्कि "छोटे समय में" होगा। यह दावा सुनते ही वैश्विक तेल कीमतें 1% तक उछल गईं, क्योंकि बाजार में अनिश्चितता बढ़ गई है।
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत ने रूस से सस्ते तेल की खरीदारी को तेज कर दिया था। रूस विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है, और युद्ध के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों से उसके तेल की कीमतें गिरीं। भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है, ने इस मौके का फायदा उठाया। 2022 से अब तक भारत ने रूस से 40% से ज्यादा तेल आयात किया है, जो सालाना 100 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार है। यह कदम भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए जरूरी था, क्योंकि मध्य पूर्व से तेल महंगा हो गया था। लेकिन अमेरिका ने इसे रूस को आर्थिक मदद बताते हुए भारत पर दबाव डाला। ट्रंप प्रशासन ने पहले भी टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी थी। अब ट्रंप का यह बयान बताता है कि भारत-अमेरिका ट्रेड डील के दौरान यह मुद्दा सुलझा। ट्रंप ने कहा कि अब चीन पर नजर है, जो रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है।
ट्रंप के दावे पर भारत सरकार ने तुरंत सफाई दी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "हमारा प्राथमिकता राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है। ऊर्जा सुरक्षा और किफायती तेल आपूर्ति भारत की प्राथमिकताएं हैं।" उन्होंने ट्रंप के बयान को "व्यक्तिगत बातचीत का हिस्सा" बताया, लेकिन कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की। विपक्ष ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा, "ट्रंप का दावा सच्चाई पर सवाल उठाता है। क्या मोदी जी ने अमेरिकी दबाव में भारत के हित बेच दिए? ऊर्जा नीति को राजनीतिक खेल न बनाएं।" भाजपा ने इसे खारिज करते हुए कहा कि मोदी की विदेश नीति हमेशा भारत-केंद्रित रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत रूसी तेल पर पूरी तरह निर्भर नहीं है, लेकिन अचानक बंद करने से महंगाई बढ़ सकती है। भारत सरकार वैकल्पिक स्रोतों जैसे अमेरिका, सऊदी अरब और UAE से तेल बढ़ाने की योजना बना रही है।
यह वादा अगर साकार होता है, तो रूस की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ेगा। रूस को भारत से अरबों डॉलर की कमाई होती है, जो युद्ध फंडिंग में मदद करती है। दूसरी ओर, अमेरिका के लिए यह जीत है, क्योंकि इससे रूस पर दबाव बढ़ेगा। ट्रंप ने इसे "ब्रेकिंग न्यूज" बताते हुए कहा कि यह अमेरिकी टैरिफ नीति की सफलता है। लेकिन एनर्जी एनालिस्ट्स चेतावनी दे रहे हैं कि तेल कीमतें अस्थिर हो सकती हैं। ब्रेंट क्रूड पहले ही 80 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर पहुंच गया है। भारत के लिए चुनौती यह है कि रूसी तेल सस्ता था, जो पेट्रोल-डीजल कीमतों को कंट्रोल में रखता था। अगर आयात बंद होता है, तो उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ेगा। फिर भी, ट्रंप-मोदी की दोस्ती को देखते हुए यह कदम US-India संबंधों को मजबूत करेगा। दोनों नेता QUAD और इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी पर पहले से करीब हैं।
भारत-रूस तेल व्यापार की पृष्ठभूमि
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत ने रूस से सस्ते तेल की खरीदारी को तेज कर दिया था। रूस विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है, और युद्ध के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों से उसके तेल की कीमतें गिरीं। भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है, ने इस मौके का फायदा उठाया। 2022 से अब तक भारत ने रूस से 40% से ज्यादा तेल आयात किया है, जो सालाना 100 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार है। यह कदम भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए जरूरी था, क्योंकि मध्य पूर्व से तेल महंगा हो गया था। लेकिन अमेरिका ने इसे रूस को आर्थिक मदद बताते हुए भारत पर दबाव डाला। ट्रंप प्रशासन ने पहले भी टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी थी। अब ट्रंप का यह बयान बताता है कि भारत-अमेरिका ट्रेड डील के दौरान यह मुद्दा सुलझा। ट्रंप ने कहा कि अब चीन पर नजर है, जो रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया: राष्ट्रीय हित सर्वोपरि
ट्रंप के दावे पर भारत सरकार ने तुरंत सफाई दी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "हमारा प्राथमिकता राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है। ऊर्जा सुरक्षा और किफायती तेल आपूर्ति भारत की प्राथमिकताएं हैं।" उन्होंने ट्रंप के बयान को "व्यक्तिगत बातचीत का हिस्सा" बताया, लेकिन कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की। विपक्ष ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा, "ट्रंप का दावा सच्चाई पर सवाल उठाता है। क्या मोदी जी ने अमेरिकी दबाव में भारत के हित बेच दिए? ऊर्जा नीति को राजनीतिक खेल न बनाएं।" भाजपा ने इसे खारिज करते हुए कहा कि मोदी की विदेश नीति हमेशा भारत-केंद्रित रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत रूसी तेल पर पूरी तरह निर्भर नहीं है, लेकिन अचानक बंद करने से महंगाई बढ़ सकती है। भारत सरकार वैकल्पिक स्रोतों जैसे अमेरिका, सऊदी अरब और UAE से तेल बढ़ाने की योजना बना रही है।
वैश्विक प्रभाव: ऊर्जा बाजार में हलचल
यह वादा अगर साकार होता है, तो रूस की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ेगा। रूस को भारत से अरबों डॉलर की कमाई होती है, जो युद्ध फंडिंग में मदद करती है। दूसरी ओर, अमेरिका के लिए यह जीत है, क्योंकि इससे रूस पर दबाव बढ़ेगा। ट्रंप ने इसे "ब्रेकिंग न्यूज" बताते हुए कहा कि यह अमेरिकी टैरिफ नीति की सफलता है। लेकिन एनर्जी एनालिस्ट्स चेतावनी दे रहे हैं कि तेल कीमतें अस्थिर हो सकती हैं। ब्रेंट क्रूड पहले ही 80 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर पहुंच गया है। भारत के लिए चुनौती यह है कि रूसी तेल सस्ता था, जो पेट्रोल-डीजल कीमतों को कंट्रोल में रखता था। अगर आयात बंद होता है, तो उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ेगा। फिर भी, ट्रंप-मोदी की दोस्ती को देखते हुए यह कदम US-India संबंधों को मजबूत करेगा। दोनों नेता QUAD और इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी पर पहले से करीब हैं।
क्या होगा आगे?
ट्रंप का बयान राजनीतिक रंग भी ले चुका है। अमेरिकी चुनावों से पहले ट्रंप इसे अपनी विदेश नीति की जीत दिखा रहे हैं। भारत में विपक्ष इसे संसद में उठा सकता है। लेकिन सच्चाई यह है कि वैश्विक ऊर्जा बाजार में बदलाव अपरिहार्य है। भारत जैसा विकासशील देश अपनी जरूरतों को संतुलित रखते हुए अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना कर रहा है। ट्रंप ने मोदी की तारीफ करते हुए कहा, "मेरा दोस्त मोदी इसे संभाल लेंगे।" यह देखना दिलचस्प होगा कि वादा कितनी जल्दी पूरा होता है। कुल मिलाकर, यह घटना दिखाती है कि कैसे व्यक्तिगत संबंध वैश्विक नीतियों को प्रभावित करते हैं। भारत को अब अपनी ऊर्जा विविधीकरण रणनीति पर और तेजी से काम करना होगा, ताकि भविष्य में कोई संकट न हो।Next Story