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बुंदेलखंड का पहला इको विलेज गुलमोहर बना आकर्षण का केंद्र,स्विमिंग पूल और ओपन एयर थिएटर से लेकर सब सुविधा

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सीएम योगी करेंगे भ्रमण

इसे आर्किटेक्ट दीपक गुप्ता ने तैयार किया है। यहां स्विमिंग पूल, ओपन एयर थिएटर और हवा महल आदि आकर्षण के केंद्र हैं। जल्दी ही प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस इको विलेज का भ्रमण कर सकते हैं।


जापानी तकनीक का इस्तेमाल

यह गांव तहसील नरैनी में मध्य प्रदेश की सीमा पर केन नदी के पास जंगल व पहाड़ों से घिरा है। यहां मियां बाकी की जापानी तकनीक से खेत में घना जंगल तैयार किया गया है।


रुकने की व्यवस्था

झरने और स्वीमिंगपूल, ओपन एयर थिएटर, स्थानीय व्यंजनों की सुविधा ठहरने वालों को दी जाती है। पर्यटकों के लिए लोक नृत्य के साथ उनके रुकने के लिए ग्रामीण परिवेश में शहरी सुख सुविधा से युक्त होटल का निर्माण किया गया है।


सैलानियों को ग्रामीण परिवेश की सुविधा

अभी तक यह एरिया बहुत ही पिछड़ा था। शहर से आने वाले सैलानियों और विदेशी सैलानियों के स्टे करने और आनंद लेने के लिए इसे बनाया गया है। यहां आप बैलगाड़ी में सफर का आनंद ले सकते हैं। शाम को राजस्थानी शाम का लुत्फ ले सकते हैं।


इको विलेज में थिएटर

पहाड़ों और झरनों से घिरे केन नदी के किनारे उत्तर प्रदेश का पहला रूरल इको विलेज बनाया गया है,जिसका नाम गुलमोहर है। यह रिजॉर्ट यूपी के बांदा जिले में मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर नहरी गांव के मजरा उदयीपुरवा में बना है। यहां थिएटर भी है।


इको विलेज पर 2 करोड़ खर्च

स्विमिंग पूल का भी आनंद ले सकते हैं, यहां कई जंगल ब्रिज भी बने हैं। जंगल में घूमने के लिए अलग से स्ट्रीट बनाई गई है। कमरों की खिड़कियों से जंगल नजर आते हैं। इस इको विलेज को बनाने में लगभग 2 करोड़ का खर्च आया है।


सरकार खुद कर रही है मॉनिटरिंग

इस इको विलेज के मलिक दीपक गुप्ता बताते हैं कि यह बुंदेलखंड का पहला इको विलेज रिजॉर्ट है। सरकार इसकी मॉनिटरिंग खुद कर रही है। इसमें डीएम दुर्गा शक्ति नागपाल, एडीएम अभिलाष यादव ,एसपी अंकुर अग्रवाल विशेष सहयोग कर रहे हैं। पूरे उदयीपुरवा गांव का चयन इको विलेज के रूप में किया गया है। गांव के लोगों को भी रोजगार मिल रहा है, धीरे-धीरे पूरे गांव की तस्वीर बदल रही है। मुख्यमंत्री इस इको विलेज का चुनाव बाद विजिट कर सकते हैं।


कोरोना के दौरान आया आईडिया

वह बताते हैं कि वह कानपुर में गुप्ता होटल में रहते हैं, उनका पैतृक गांव उदयीपुरवा है। कोरोना काल में उनकी मां कोरोना की चपेट में आ गई थी। जिन्हें लेकर हम अपने पैतृक गांव आ गए थे और यहां करीब तीन-चार महीने बिताए थे। इसी बीच यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर मेरे दिमाग में रिजॉर्ट बनाने का विचार आया था गांव में हमारे मिट्टी के टूटे-फूटे घर पड़े थे। जिसे मैंने डिजाइन करना शुरू किया और लगभग ढाई साल की मेहनत के बाद इसे तैयार कर पाया। हमारा पैतृक घर को विलेज के रूप में विकसित हो गया।

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